सोमवार, 1 नवंबर 2010

important: Sorry u r not receiving msgs due to technical failure, v vl solve shortly. ur frnd rajveer singh gurjar, i think it has bn hacked by some1

मंगलवार, 7 सितंबर 2010

The phenomenon of summer sleep by animals is called
Aestivation.tallest tree in the world is redwood.
espiratory organ of fish
Gills

गुरुवार, 26 अगस्त 2010

India is the largest producer consumer and exporter of spices, with major spices produced being black pepper,cardamom,ginger,garlic, turmeric, chili etc.

शनिवार, 17 अप्रैल 2010


खाप पंचायतों का कहर
जब भी गाँव, जाति, गोत्र, परिवार की 'इज़्ज़त' के नाम पर होने वाली हत्याओं की बात होती है तो जाति पंचायत या खाप पंचायत का ज़िक्र बार-बार होता है.
शादी के मामले में यदि खाप पंचायत को कोई आपत्ति हो तो वे युवक और युवती को अलग करने, शादी को रद्द करने, किसी परिवार का समाजाकि बहिष्कार करने या गाँव से निकाल देने और कुछ मामलों में तो युवक या युवती की हत्या तक का फ़ैसला करती है.
लेकिन क्या है ये खाप पंचायत और देहात के समाज में इसका दबदबा क्यों कायम है? हमने इस विषय पर और जानकारी पाने के लिए बात की डॉक्टर प्रेम चौधरी से, जिन्होंने इस पूरे विषय पर गहन शोध किया है. प्रस्तुत हैं उनके साथ बातचीत के कुछ अंश:
खाप पंचायतों का 'सम्मान' के नाम पर फ़ैसला लेने का सिलसिला कितना पुराना है?
ऐसा चलन उत्तर भारत में ज़्यादा नज़र आता है. लेकिन ये कोई नई बात नहीं है. ये ख़ासे बहुत पुराने समय से चलता आया है....जैसे जैसे गाँव बसते गए वैसे-वैसे ऐसी रिवायतें बनतीं गई हैं. ये पारंपरिक पंचायतें हैं. ये मानना पड़ेगा कि हाल-फ़िलहाल में इज़्ज़त के लिए हत्या के मामले बहुत बढ़ गए है.ये खाप पंचायतें हैं क्या? क्या इन्हें कोई आधिकारिक या प्रशासनिक स्वीकृति हासिल है?
रिवायती पंचायतें कई तरह की होती हैं. खाप पंचायतें भी पारंपरिक पंचायते है जो आजकल काफ़ी उग्र नज़र आ रही हैं. लेकिन इन्हें कोई आधिकारिक मान्यता प्राप्त नहीं है.
खाप पंचायतों में प्रभावशाली लोगों या गोत्र का दबदबा रहता है. साथ ही औरतें इसमें शामिल नहीं होती हैं, न उनका प्रतिनिधि होता है. ये केवल पुरुषों की पंचायत होती है और वहीं फ़ैसले लेते हैं. इसी तरह दलित या तो मौजूद ही नहीं होते और यदि होते भी हैं तो वे स्वतंत्र तौर पर अपनी बात किस हद तक रख सकते हैं, हम जानते हैं. युवा वर्ग को भी खाप पंचायत की बैठकों में बोलने का हक नहीं होता...एक गोत्र या फिर बिरादरी के सभी गोत्र मिलकर खाप पंचायत बनाते हैं. ये फिर पाँच गाँवों की हो सकती है या 20-25 गाँवों की भी हो सकती है. मेहम बहुत बड़ी खाप पंचायत और ऐसी और भी पंचायतें हैं.जो गोत्र जिस इलाक़े में ज़्यादा प्रभावशाली होता है, उसी का उस खाप पंचायत में ज़्यादा दबदबा होता है. कम जनसंख्या वाले गोत्र भी पंचायत में शामिल होते हैं लेकिन प्रभावशाली गोत्र की ही खाप पंचायत में चलती है. सभी गाँव निवासियों को बैठक में बुलाया जाता है, चाहे वे आएँ या न आएँ...और जो भी फ़ैसला लिया जाता है उसे सर्वसम्मति से लिया गया फ़ैसला बताया जाता है और ये सभी पर बाध्य होता है.
सबसे पहली खाप पंचायतें जाटों की थीं. विशेष तौर पर पंजाब-हरियाणा के देहाती इलाक़ों में जाटों के पास भूमि है, प्रशासन और राजनीति में इनका ख़ासा प्रभाव है, जनसंख्या भी काफ़ी ज़्यादा है... इन राज्यों में ये प्रभावशाली जाति है और इसीलिए इनका दबदबा भी है.
हाल-फ़िलहाल में खाप पंचायतों का प्रभाव और महत्व घटा है, क्योंकि ये तो पारंपरिक पंचायते हैं और संविधान के मुताबिक अब तो निर्वाचित पंचायतें आ गई हैं. खाप पंचायत का नेतृत्व गाँव के बुज़ुर्गों और प्रभावशाली लोगों के पास होता है.
खाप पंचायतों के लिए गए फ़ैसलों को कहाँ तक सर्वसम्मति से लिए गए फ़ैसले कहा जाए?
लोकतंत्र के बाद जब सभी लोग समान हैं. इस हालात में यदि लड़का लड़की ख़ुद अपने फ़ैसले लें तो उन्हें क़ानून तौर पर अधिकार तो है लेकिन रिवायती तौर पर नहीं है.
खाप पंचायतों में प्रभावशाली लोगों या गोत्र का दबदबा रहता है. साथ ही औरतें इसमें शामिल नहीं होती हैं, न उनका प्रतिनिधि होता है. ये केवल पुरुषों की पंचायत होती है और वहीं फ़ैसले लेते हैं.
इसी तरह दलित या तो मौजूद ही नहीं होते और यदि होते भी हैं तो वे स्वतंत्र तौर पर अपनी बात किस हद तक रख सकते हैं, वह हम सभी जानते हैं. युवा वर्ग को भी खाप पंचायत की बैठकों में बोलने का हक नहीं होता. उन्हें कहा जाता है कि - 'तुम क्यों बोल रहे हो, तुम्हारा ताऊ, चाचा भी तो मौजूद है.'
क्योंकि ये आधिकारिक तौर पर मान्यता प्राप्त पंचायतें नहीं हैं बल्कि पारंपरिक पंचायत हैं, इसलिए इसलिए आधुनिक भारत में यदि किसी वर्ग को असुरक्षा की भावना महसूस हो रही है या वह अपने घटते प्रभाव को लेकर चिंतित है तो वह है खाप पंचायत....
इसीलिए खाप पंचायतें संवेदनशील और भावुक मुद्दों को उठाती हैं ताकि उन्हें आम लोगों का समर्थन प्राप्त हो सके और इसमें उन्हें कामयाबी भी मिलती है.
पिछले कुछ वर्षों में इन पंचायतों से संबंधित हिंसा और हत्या के इतने मामले क्यों सामने आ रहे हैं?
स्वतंत्रता के बाद एक राज्य से दूसरे राज्य में और साथ ही एक ही राज्य के भीतर भी बड़ी संख्या में लोगों का आना-जाना बढ़ा है. इससे किसी भी क्षेत्र में जनसंख्या का स्वरूप बदला है.
एक गाँव जहाँ पाँच गोत्र थे, आज वहाँ 15 या 20 गोत्र वाले लोग हैं. छोटे गाँव बड़े गाँव बन गए हैं. पुरानी पद्धति के अनुसार जातियों के बीच या गोत्रों के बीच संबंधों पर जो प्रतिबंध लगाए गए थे, उन्हें निभाना अब मुश्किल हो गया है.यदि पहले पाँच गोत्रों में शादी-ब्याह करने पर प्रतिबंध था तो अब इन गोत्रों की संख्या बढ़कर 20-25 हो गई है. आसपास के गाँवों में भी भाईचारे के तहत शादी नहीं की जाती है.ऐसे हालात में जब लड़कियों की जनसंख्या पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पहले से ही कम है और लड़कों की संख्या ज़्यादा है, तो शादी की संस्था पर ख़ासा दबाव बन गया है.
ये आधिकारिक तौर पर मान्यता प्राप्त पंचायतें नहीं हैं बल्कि पारंपरिक पंचायत हैं, इसलिए इसलिए आधुनिक भारत में यदि किसी वर्ग को असुरक्षा की भावना महसूस हो रही है या वह अपने घटते प्रभाव को लेकर चिंतित है तो वह है खाप पंचायत...इसीलिए खाप पंचायतें संवेदनशील और भावुक मुद्दों को उठाती हैं ताकि उन्हें आम लोगों का समर्थन प्राप्त हो सके और इसमें उन्हें कामयाबी भी मिलती है
डॉक्टर प्रेम चौधरी
दूसरी ओर अब ज़्यादा बच्चे शिक्षा पा रहे हैं. लड़के-लड़कियों के आपस में मिलने के अवसर भी बढ़ रहे हैं. कहा जा सकता है कि जब आप गाँव की सीमा से निकलते हैं तो आपको ये ख़्याल नहीं होता कि आप से मिलना वाल कौन व्यक्ति किस जाति या गोत्र का है और अनेक बार संबंध बन जाते हैं. ऐसे में पुरानी परंपरा और पद्धति के मुताबिक लड़कियों पर नियंत्रण कायम रखना संभव नहीं. लड़के तो काफ़ी हद तक ख़ुद ही अपने फ़ैसले करते हैं.
पिछले कुछ वर्षों में जो किस्से सामने आए हैं वो केवल भागकर शादी करने के नहीं हैं. उनमें से अनेक मामले तो माता-पिता की रज़ामंदी के साथ शादी के भी है पर पंचायत ने गोत्र के आधार पर इन्हें नामंज़ूर कर दिया. खाप पंचायतों का रवैया तो ये है - 'छोरे तो हाथ से निकल गए, छोरियों को पकड़ कर रखो.' इसीलिए लड़कियाँ को ही परंपराओं, प्रतिष्ठा और सम्मान का बोझ ढोने का ज़रिया बना दिया गया है.
ये बहुत विस्फोटक स्थिति है.इस पूरे प्रकरण में प्रशासन और सरकार लाचार से क्यों नज़र आते हैं?प्रशासन और सरकार में वहीं लोग बैठे हैं जो इसी समाज में पैदा और पले-बढ़े हैं. यदि वे समझते हैं कि उनके सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों को औरत को नियंत्रण में रखकर ही आगे बढ़ाया जा सकता है तो वे भी इन पंचायतों का विरोध नहीं करेंगे. देहात में जाऊँ तो मुझे बार-बार सुनने को मिलता है कि ये तो सामाजिक समस्या है, लड़की के बारे में उसका कुन्बा ही बेहतर जानता है. जब तक क़ानून व्यवस्था की समस्या पैदा न हो जाए तब तक ये लोग इन मामलों से दूर रहते हैं.आधुनिकता और विकास के कई पैमाने हो सकते हैं लेकिन देहात में ये प्रगति जो आपको नज़र आ रही है, वो कई मायनों में सतही है. छोरे तो हाथ से निकल गए, छोरियों को पकड़ लो.
क्या समाज में जनतांत्रिकीकरण की प्रक्रिया अब मजबूत होने लगी है ? सालों से खाप पंचायतों के अड़ियल रवैए को देखते हुए लगता था कि इनके खिलाफ मोर्चा खोलना आसान नहीं होगा। बावजूद इसका प्रतिरोध भी होता रहा और युवाओं ने भी हार नहीं मानी तथा जीवनसाथी चुनने के अपने अधिकार का उपयोग किया। संभव है कि करनाल कोर्ट का ताजा फैसला कुछ असर दिखाए जिसमें सात लोगों को सजा मिली है। मनोज-बबली के सगोत्र विवाह से क्रुद्ध खाप पंचायत के निर्देश पर उन्हें मौत के घाट उतारने वाले पाँच को फाँसी की सज़ा, खाप पंचायत के प्रमुख को आजीवन कारावास तथा ड्राइवर को सात साल की सजा मिली है। केस तो अभी चलेगा क्योंकि बचाव पक्ष ऊपरी अदालत की शरण में जाएगा। लेकिन यह पहला मौका है जब हरियाणा में इज्जत के नाम पर होने वाली हत्या को इतनी गंभीरता से लेते हुए ३३ माह की सुनवाई के बाद सख्त फैसला सुनाया गया है। इससे लड़ने वाले तथा आगे अपनी मर्जी से शादी करने वालों को हौसला मिलेगा तथा मध्ययुग का प्रतीक बनी ये जाति पंचायतें भी आसानी से फरमान नहीं सुना पाएँगी।मनोज-बबली हत्याकांड में दोषियों को सजा दिलाने के लिए तमाम बाधाओं-धमकियों के बावजूद मजबूती से खड़ी रही मनोज की माँ चन्दरवती की तारीफ की जानी चाहिए जिन्होंने हार नहीं मानी। अपने गाँव में तथा अपने समुदाय में "अपने कहे जाने वाले" लोगों के खिलाफ खड़े रहना बहुत साहस की माँग करता है। अभी भी उन्होंने ललकारा है कि खाप पंचायत के मुखिया गंगाराम को, जिसने इस मामले में पहल की मगर जिसे फाँसी नहीं उम्रकैद की सजा मिली है, फाँसी की सजा दिलवाने के लिए वे कानूनी लड़ाई जारी रखेंगी। काश बेटियों की माँएँ भी कमर कसें कि यदि इज्जत के नाम पर बेटी को मारा जाए या फिर उसकी मर्जी को परिवार में या जाति पंचायत में कुचला जाए तो वे भी संघर्ष करेंगी। तब तानाशाही प्रवृत्ति के खिलाफ तेजी से माहौल बदलेगा।खाप पंचायतों के अमानवीय रवैए पर राष्ट्रीय महिला आयोग की चुप्पी बहुत खतरनाक है। क्या उसका मौन इस वजह से है कि खाप पंचायतों का रवैया जिस सूबे के कारण सुर्खियों में बना है, वहाँ केंद्र में सत्तासीन कांग्रेस पार्टी की ही सरकार है? इस मौन की पड़ताल आवश्यक है। कुछ समय पहले की बात है जब पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने संविधानप्रदत्त कानूनों को धता बताने वाली इन जाति पंचायतों पर अंकुश लगाने के लिए इन्हें गैरकानूनी गतिविधियाँ निवारण अधिनियम (अनलॉफुल एक्टिविटीज प्रिवेन्शन एक्ट) के दायरे में लेने की बात की थी। मालूम हो कि उच्च न्यायालय के प्रस्ताव पर हरियाणा सरकार ने यह दलील दी थी कि इन जाति पंचायतों पर ऐसे अधिनियमों का इस्तेमाल होगा तो सामाजिक संतुलन बिगड़ सकता है। वैसे अदालत के आँखें तरेरने के बाद प्रशासन को सख्त होना पड़ा था और पिछले दिनों उसने रोहतक के चन्द राजस्व अधिकारियों को निलंबित किया था जिन्होंने एक ऐसी पंचायत में हिस्सेदारी की थी जिसने सगोत्र विवाह करने वाले पति-पत्नी को एक-दूसरे को भाई-बहन कहने का आदेश दिया था।महज अदालतें ही नहीं यह भी देखने में आया है कि सामाजिक संगठन तथा जनतांत्रिक हकों के पक्षधर लोग अब खुलकर खाप पंचायतों के खिलाफ सामने आने लगे हैं। फरवरी माह के तीसरे सप्ताह में इन विभिन्ना संगठनों ने रोहतक के मेहम में इस मसले पर सम्मेलन का आयोजन किया था जिसमें महिलाओं की अच्छी-खासी भागीदारी थी। सम्मेलन ने खाप पंचायतों की शक्ति को चुनौती देने का आह्वान किया तथा लोगों से अपील की कि वे इन्हें हाशिए पर डाल दें। सरकार से यह आग्रह किया गया वे इन खाप पंचायतों को गैरकानूनी घोषित करवाने के लिए कानून का सहारा लें। लोगों ने मंच से कहा कि गोत्र का मुद्दा बेतुका और निराधार है। सामाजिक संगठनों का संयुक्त मोर्चा यदि निरंतर अपनी उपस्थिति तथा सक्रियता बनाए रहता है तो निश्चित ही यह अपेक्षा की जानी चाहिए कि फिर इन मध्ययुगीन किस्म के फरमानों पर अमल बीते दिनों की बात बन जाएगी। दरअसल इनकी मनमानी के पीछे यही कारण रहे हैं कि सरकारों तथा प्रशासन ने इनके प्रति ढुलमुल रवैया अपनाया तथा नेताओं ने वोट बैंक खिसकने की आशंका से इनके खिलाफ कदम नहीं उठाया। सोचने का मुद्दा यह है कि खाप पंचायतें ऐसा कर पाने में वे सफल क्यों होती दिखी हैं ? इन ताकतों और विचारों पर प्रश्न खड़ा करने का वातावरण तैयार करने के बजाय स्थानीय लोग इसे मजबूती प्रदान करने में क्यों लगे हैं ? इतना ही नहीं ये पंचायतें अपने फरमानों को लागू करवाने के लिए कानूनी वैधता हासिल करने का भी प्रयास कर रही हैं। पिछले साल पश्चिमी उत्तरप्रदेश में आयोजित एक ऐसी ही महापंचायत में घोषणा की गई थी कि हाईकोर्ट में अपील दायर की जाएगी कि "हिन्दू विवाह अधिनियम १९५६" में संशोधन करके सगोत्र विवाह पर प्रतिबंध लगाया जाए। यह समझना भी उतना ही आवश्यक है कि दूसरों के नागरिक तथा व्यक्तिगत अधिकारों को कुचलने की मानसिकता सिर्फ इन खाप पंचायतों के सदस्यों में ही नहीं है बल्कि यह एक सोच और मानसिकता है जिसके खिलाफ लंबी लड़ाई जरूरी है। जरूरी है कि लोगों, सामाजिक संगठनों आदि के माध्यम से यह भी स्थापित करने का प्रयास किया जाए कि शादी-ब्याह, साथ रहना नहीं रहना आदि संबधित व्यक्ति ही तय करे और वही अपनी गृहस्थी चलाने के लिए जिम्मेदार भी हो। माता-पिता-बुजुर्ग या अन्य पारिवारिक जिम्मेदारियों को वहन करने के लिए जिम्मेदार होते हैं। जरूरी नहीं है कि व्यक्तियों के निजी फैसले भी परिवार लेने लगें।अंत में, मनोज-बबली हत्याकांड में अदालती सक्रियता ने खाप पंचायतों को सुरक्षात्मक पैंतरा अख्तियार करने के लिए मजबूर किया है।

गुरुवार, 15 अप्रैल 2010

term is used for Money borrowed or lent for a day or overnight-
Call Money. bank uses punch line “India’s International Bank”
Bank of Baroda

बुधवार, 14 अप्रैल 2010

Rate at which RBI purchases or rediscounts bills of exchange ofcommercial banks. What this rate is called?
Bank Rate

मंगलवार, 13 अप्रैल 2010

BUDGET Annual estimate of expenditure&revenue of a country or a subordinate authority corporation.OCTROI Tax imposed on articles comin insIDE A CITY

शनिवार, 30 जनवरी 2010

The Forward Markets Commission (FMC),established under the Forward Contracts (Regulation) Act,1952is the agency which regulates commodity TRADING

शुक्रवार, 29 जनवरी 2010

The Forward Markets Commission (FMC),established under the Forward Contracts (Regulation) Act,1952is the agency which regulates commodity TRADING

मंगलवार, 26 जनवरी 2010

d launching of Pilot phase of the SHG (Self Help Group) Bank Linkage programme in February 1992 by NABARD. HAV A NICE DAY dearz.thaNX GOOD RESPONSE

सोमवार, 25 जनवरी 2010

KISAN CREDIT CARD is valid for 3 years subject to annual review.Limit to be fixed on the basis of operational land holding, cropping pattern and scal
Farmers' Club Programme is an appropriate and most suitable strategy initiated by NABARD in late 1982.SEND UR SUGGESTIONS AT 9636556039. URFRNDRAJVEER
The Forward Markets Commission (FMC),established under the Forward Contracts (Regulation) Act,1952is the agency which regulates commodity TRADING

रविवार, 24 जनवरी 2010

At present,25commodity exchanges R in operation in India carrying out futures trading in as many as 81commodity items&are regional &commodity specific
Farm Innovation and Promotion Fund (FIPF) has been created in NABARD with an initial corpus of Rs.5 crores from out of its operating surplus for the
d Wadi" programme sponsored by Kreditanstalt fur Wiederaufbau(KfW), Germany is under implementation in two states:maharashtra & gujarat. hav a nice

शनिवार, 23 जनवरी 2010

The “Wadi” model of tribal development is holistic in approach addressing production, processing and marketing of the produce and also other needs
Kutch Drought Proofing Project (KDPP) WAS announced after earthquake out of Prime Minister's National Relief Fund (PMNRF)4relief, rehabilitation&const
Karnataka, Tamilnadu, Maharashtra, W Bengal and UP r effectively participating in the watershed development fund programme.hav a nice day.RAJVEER

शुक्रवार, 22 जनवरी 2010

RBI has classified loans2agri-clinics and agribusiness centres as direct agricultural loans,even though input supply is normally classified as indiret
The AICI has introduced a new rainfall index based insurance product called Varsh Bima in four states, viz., A.Pradesh, Karnataka, Rajasthan and u.p.
Nine activities have been made eligible by Ministry of SSI ,GOI for coverage under the Credit Guarantee Fund Scheme for small industries

गुरुवार, 21 जनवरी 2010

NAIS is in operation since rabi1999-2000 & is being implemented by 23 states and 2 UTs.So far, 590.55 lakh farmers have been covered under the scheme
NABARD and General Insurance Company (GIC) have contributed 30 and 35 per cent, respectively, and four other Insurance Subsidiaries, at 8.75 per cent
Agriculture Insurance Company of India Ltd. (AICI) was established in 2002 with the authorised and paid up capital of Rs.1,500 crore and Rs.200 crore

बुधवार, 20 जनवरी 2010

At present, APEDA has set up 60 Agri-Export Zones (AEZs) spread over 230 districts in 20 states. NABARD was established in 1982.hav a nice day.
The SEZ Act 2005 envisages key role for the State Governments in Export Promotion and creation of related infrastructure.2join type ON AGRITODAY &RPLy
Asia's 1st export promotion zone(EPZ) set up in Kandla in1965.the Special Economic Zones (SEZs) Policy was announced in April 2000.invt ur frnds

मंगलवार, 19 जनवरी 2010

10th 5year plan-Reduction of Infant Mortality Rate (IMR) to45/1000 live births by 2007 and to 28 by 2012.Increase in forest and tree cover to25%by2007
10th plan(2002-2007)-2achieve d growth rate ofGDP@ 8%.Reduction of poverty ratio to 20%by2007 and to 10% by 2012.Universl access2primary edu by 2007
9thplan(1997-2002)four important dimensions4 development:Quality of life, generation of productive employment, regional balance and self-reliance.

सोमवार, 18 जनवरी 2010

8TH PLAN 92-97- rapid economic growth, high growth of agriculture and allied sector, and manufacturing sector, growth in exports and imports,
Seventh Plan(1985-90)It was a great success, the economy recorded 6% growth rate against the targeted 5%.invt ur frnds 2join type ON AGRITODAY & REPLY
6thplan1980-85.objectives-Increase in national income, modernization of technology, ensuring continuous decrease in poverty and unemployment, populat

रविवार, 17 जनवरी 2010

Rolling Plan1978-80There were 2 Sixth Plans.1by Janta Govt. (78-83) which was in operation for 2 years only and the other by the Congress Govt.
5th plan prepared&launched by D.D.Dhar proposed2achieve2main objectives viz, 'removal of poverty' (Garibi Hatao) and 'attainment of self reliance'
Fourth Plan (1969 -74)Fared well in the first two years with record production, last three years failure because of poor monsoon.ONLY4AGRIANS

बुधवार, 13 जनवरी 2010

Man power is considered equal to 0.1 HP. horse power is in one kW (Kilowatt)- 1.34HP
Agricultural tractors R generally having horse power 20-50HP.Work = Force (kg) x Distance (m)
304.8 mm. r in one foot length.Reapers r used for Crop cutting.invt ur frnds to join type JOIN AGRITODAY & SENDTO 9870807070
Swing-basket (Dhenkuli) is used forLifting water from wells.d working efficiency per day of deshi plough is0.4 ha

रविवार, 3 जनवरी 2010

As per the census 2001 what is the ratio of rural : urban population IS 28:72. Bharat Nirman was launched IN 2005
In Madhya Pradesh & Andhra Pradesh stateS of India , maximum Diamond Mines are found
The Krishi Shramik Suraksha Yojna (KSSY)july1,2001 provides insurance cover to agricultural workers

शनिवार, 2 जनवरी 2010

Farm Innovation and Promotion Fund (FIPF) has been created in NABARD with an initial corpus of Rs.5 crores from out of its operating surplus for the

शुक्रवार, 1 जनवरी 2010

Early this morning God gave me 3 baskets of fruits- LOVE + HAPPINESS + PEACE OF MINDand told me 2 share them with peal Dear 2 me.I’m sharing all with U…